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ग़ज़ल
'मुनीर' इस मुल्क पर आसेब का साया है या क्या है
कि हरकत तेज़-तर है और सफ़र आहिस्ता आहिस्ता
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
जहाँ हरकत नहीं होती वहाँ बरकत नहीं होती
'सुरूर' अब वादी-ए-गुल में क़याम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
ना-तवानी से नहीं है मुझे मुमकिन हरकत
मैं हूँ हर्फ़ों की तरह मेरा है बिस्तर काग़ज़
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
जिस में ताक़त है न हरकत है न ख़्वाहिश है न जाँ
दिल नहीं इक लाश है सीने में दफ़नाई हुई