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ग़ज़ल
आएगा ज़बाँ पर न कभी हर्फ़-ए-शिकायत
हम ज़िक्र ग़ज़ल में भी तुम्हारा न करेंगे
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
वाक़े' में ये है हर्फ़-ए-शिकायत भी क्या कहें
निकला न कोई जो मिरा अरमाँ तमाम-उम्र
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
दम का आना तो बड़ी बात है लब पर 'आरिफ़'
ज़ोफ़ ने हर्फ़-ए-शिकायत कभी आने न दिया
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
लबों तक आ के सब हर्फ़-ए-शिकायत टूट जाते हैं
अजब अंदाज़ से वो देखता है क्या किया जाए