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ग़ज़ल
अश्क है तेल शब-ए-हिज्र में ऐ जान-ए-'सिराज'
हर पलक हसरत-ए-ज़ैतून है वत्तीं की क़सम
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
'हसरत'-ए-ग़म-ज़दा का ग़म खावेगा तू अगर न यार
उस के हैं तुझ से ग़म-गुसार यक दो सह चार पंज ओ शश
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बेटियों के दम से क़ाएम है वुजूद-ए-काएनात
फिर भी कुछ लोगों को 'हसरत' सिर्फ़ बेटा चाहिए
हसरत देवबंदी
ग़ज़ल
दर-ए-रहमत ख़ुदा का बाज़ है दिल अपना ताज़ा रख
क़फ़स में हसरत-ए-गुल से मत इतना फड़फड़ा बुलबुल
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बुझ गए चराग़ आख़िर क्यों पता चला 'हसरत'
ये क़ुसूर सारे का सारा बस हवा का है