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ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
हिम्मत किस की है जो पूछे ये 'आरज़ू'-ए-सौदाई से
क्यूँ साहब आख़िर अकेले में ये किस से बातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
एक लगी के दो हैं असर और दोनों हस्ब-ए-मरातिब हैं
लौ जो लगाए शम्अ' खड़ी है रक़्स में है परवाना भी