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ग़ज़ल
ऐ दो-जहाँ के मालिक आ'ला है नाम तेरा
पर दिल की बस्तियों में देखा मक़ाम तेरा
अनीसा हारून शिरवानिया
ग़ज़ल
बहाए शबनम ने अश्क पैहम नसीम भरती है सर्द आहें
न सौत-ए-बुलबुल में है तरन्नुम हर एक नग़्मे का तार बदला
अनीसा हारून शिरवानिया
ग़ज़ल
वो ग़ुंचा हूँ जो बिन खिले मुरझाए चमन में
वो अश्क हूँ जो ज़ीनत-ए-दामाँ नहीं होता