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ग़ज़ल
हिजाब-ए-दरमियाँ से दीद का अरमान बढ़ता है
अदा मतलब हिजाब-ए-दरमियाँ से कुछ नहीं होता
तालिब देहलवी
ग़ज़ल
'हिजाब' इस शहर-ए-ना-पुरसाँ में सब झगड़ा अना का है
सुरूर-ए-ख़ुद-परस्ती में ख़ुदी को कौन लिक्खेगा
हिजाब अब्बासी
ग़ज़ल
हिजाब अब्बासी
ग़ज़ल
नज़र को शौक़ बख़्शा तो सरापा आँख हो जाऊँ
कसाफ़त की कोई चादर हिजाब-ए-दरमियाँ क्यों हो
सय्यद मुईनुद्दीन मख़्फ़ी
ग़ज़ल
अगर अहद-ए-वफ़ा से तू भी फिर जाए मोहब्बत में
'हिजाब' उस शोख़ को मालूम हो जाए दग़ा देना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
'हिजाब' पैहम ये कह रहा है गुनाहगारों ने जोश-ए-रहमत
मुबारक ऐ आसियो मुबारक शफ़ी-ए-रोज़-ए-जज़ा की आमद
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
शाहजहाँ जाफ़री हिजाब अमरोहवी
ग़ज़ल
कभी याद उन की आई है कभी वो ख़ुद भी आते हैं
मोहब्बत में हिजाब-ए-दरमियाँ बाक़ी नहीं रहता
आरिफ़ नक़्शबंदी
ग़ज़ल
मुख़ालिफ़ उस के कुछ कुछ आ रही हैं दिल की आवाज़ें
मगर हम से हिजाब-ए-दरमियाँ कुछ और कहता है
ग़ुबार भट्टी
ग़ज़ल
लताफ़त इश्क़ की है मान-ए-नज़्ज़ारा-ए-सूरत
मोहब्बत ख़ुद हिजाब-ए-दरमियाँ मालूम होती है
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
हिजाब-ए-ज़ाहिर-ओ-बातिन भी दरमियाँ में नहीं
अब इम्तियाज़ कोई मेरे जिस्म-ओ-जाँ में नहीं
वहशी कानपुरी
ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ
ये मिरे वजूद की सल्तनत है अजब ज़वाल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
वो मेरा वहम-ए-नज़र था कि तेरा अक्स-ए-जमील
वो कौन था कि जो मंज़र के दरमियाँ गुज़रा