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ग़ज़ल
कू-ए-बुताँ से तौफ़-ए-हरम को चले तो हम
लेकिन कमाल-ए-हसरत ओ हिरमान ओ ग़म के साथ
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
बयान मेरठी
ग़ज़ल
हसरत ओ हिरमान ओ यास ओ हैरत रंज ओ तअब
क्या कहूँ इस हिज्र में क्या क्या है और क्या क्या नहीं
रंगीन सआदत यार ख़ाँ
ग़ज़ल
ज़ब्त-ओ-हिरमान-ओ-अलम से नहीं होती है ग़ज़ल
औज पर अज़्म-ए-जवाँ हो तो ग़ज़ल होती है
समी सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हुजूम-ए-रंज-ओ-ग़म हिरमान-ओ-हसरत यास-ओ-नाकामी
कहाँ जुज़ इस के नख़्ल-ए-इश्क़ में कोई समर देखा
क़ाज़ी जलाल हरीपुरी
ग़ज़ल
हैं तिरे अंजाम में हिरमान-ओ-हसरत ही निहाँ
ये अयाँ है क़िस्सा-ए-उल्फ़त तिरे आग़ाज़ से
सय्यद अनीसुद्दीन अहमद रीज़वी अमरोहवी
ग़ज़ल
ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँख में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रौशनी कभी बे-चराग़ ये घर न हो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मेरे ग़मगीं होने पर अहबाब हैं यूँ हैरान 'क़तील'
जैसे मैं पत्थर हूँ मेरे सीने में जज़्बात नहीं