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ग़ज़ल
कहाँ का जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन कहाँ का ख़ुलूस
बस इक़्तिदार का चक्कर है क्या किया जाए
फ़ाख़िर जलालपुरी
ग़ज़ल
अब वो रंग-ए-बादा-ए-उल्फ़त इलाही क्या हुआ
जोशिश-ए-हुब्ब-ए-वतन जो दिल के पैमाने में था
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
इधर आओ मय-ए-हुब्ब-ए-वतन की चाशनी चक्खो
सदा 'कैफ़ी' की है ये ख़्वाहिश-ए-जाम-ए-फ़ुग़ाँ कब तक
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
जानते हैं जुज़्व है ईमान का हुब्ब-ए-वतन
बे-तरह भूले वतन हैं क्या हुआ उस्ताद को
मोहम्मद इब्राहीम आजिज़
ग़ज़ल
जानते हैं जुज़्व है ईमान का हुब्ब-ए-वतन
बे-तरह भूले वतन हैं क्या हुआ उस्ताद को
मोहम्मद इब्राहीम आजिज़
ग़ज़ल
है जिन्हें सब से ज़ियादा दा'वा-ए-हुब्बुल-वतन
आज उन की वज्ह से हुब्ब-ए-वतन रुस्वा तो है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
इश्क़-ए-दीं हुब्ब-ए-वतन ज़ौक़-ए-अमल पास-ए-वफ़ा
जौहर-ए-इंसानियत हैं ये किसी दम-साज़ के
गुलज़ार देहलवी
ग़ज़ल
जो भी हैं सुब्ह-ए-वतन ही के परस्तारों में हैं
किन से हम ऐ शाम-ए-ग़ुर्बत तेरा अफ़्साना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
हर शख़्स मो'तरिफ़ कि मुहिब्ब-ए-वतन हूँ मैं
फिर 'अदलिया ने क्यूँ सर-ए-मक़्तल क्या मुझे