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ग़ज़ल
लम्हों में ज़िंदगी का सफ़र यूँ गुज़र गया
साए में जैसे कोई मुसाफ़िर ठहर गया
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
ग़ज़ल
नाला-ए-जान-ए-ख़स्ता-जाँ अर्श-ए-बरीं पे जाए क्यों
मेरे लिए ज़मीन पर साहब-ए-अर्श आए क्यों
अमजद हैदराबादी
ग़ज़ल
हर तौर हर तरह की जो ज़िल्लत मुझी को है
दुनिया में क्या किसी से मोहब्बत मुझी को है