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ग़ज़ल
दूर थे होश-ओ-हवास अपने से भी बेगाना था
उन को बज़्म-ए-नाज़ थी और मुझ को ख़ल्वत-ख़ाना था
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
होश-ओ-हवास-ओ-अक़ल-ओ-ख़िरद दे गए जवाब
यानी नहीं हूँ मैं किसी क़ाबिल तिरे बग़ैर
नादिर शाहजहाँ पुरी
ग़ज़ल
रह गए होश-ओ-हवास-ओ-ख़िरद-ओ-ताक़त सब
यूँ तिरे कूचे से मैं बे-सर-ओ-सामाँ निकला
नवाब सुलेमान शिकोह
ग़ज़ल
होश-ओ-हवास खोने लगा हूँ फ़िराक़ में
तन्हाइयों ने ऐसा मुक़फ़्फ़ल क्या मुझे