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ग़ज़ल
जो गले तक आ के अटक गया जिसे तल्ख़-काम न पी सके
वो लहू का घूँट उतर गया तो सुना है शीर-ओ-शकर भी है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जगत सबहहा अमत बरहमुख अटक कहसवा ममन करन खा
दिवानी केनी तुमन सुरीजन न सुध की गर पर न बुध की झाला
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ये नफ़्स हमारा दुश्मन है इसे राह पे लाना मुश्किल है
औरों को मनाना आसाँ है इस दिल को मनाना मुश्किल है
अतीक़ अहमद जाज़िब
ग़ज़ल
मुल्क से रिश्ता हमारा है कुछ ऐसा ही 'अतीक़'
जिस्म का जैसे हुआ करता है रिश्ता जान से