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ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
तुम थे लेकिन दो हिस्सों में बटे हुए थे तुम
आँख खुली तो बिस्तर की हर सिलवट में था ख़ौफ़
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
साक़िया दोनों जहाँ से फिर तो बेड़ा पार है
गर बत-ए-मय आए दरिया के किनारे हाथ में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
नग़्मा-ए-नय भी न हो बाँग-ए-बत-ए-मय भी न हो
ये भी जीने की अदा है मुझे मा'लूम न था