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ग़ज़ल
क्यूँ न वहशत-ए-ग़ालिब बाज-ख़्वाह-ए-तस्कीं हो
कुश्ता-ए-तग़ाफ़ुल को ख़स्म-ए-ख़ूँ-बहा पाया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हटता नहीं तसव्वुर-ए-अस्बाब-ओ-मुल्क-ओ-माल
कानों में बज रही है वो शहना-ए-लखनऊ