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ग़ज़ल
तुझे हादसात-ए-पैहम से भी क्या मिलेगा नादाँ
तिरा दिल अगर हो ज़िंदा तो नफ़स भी ताज़ियाना
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
हार और जीत की पूरी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है
उज़्र उस चालाक से कोई कैसे खेले छूट के साथ
अज़हर फ़राग़
ग़ज़ल
चार दिन की ज़ीस्त में बस चार पल ख़ुशियों के हैं
किस लिए फिर रात दिन मातम तू मुझ से बात कर
ऋतु सिंह राजपूत रीत
ग़ज़ल
ज़रा ठोकर लगे तो ख़ुद-कुशी की बात करता है
बशर इस दौर का कुछ उलझनों से कितना डरता है
ऋतु सिंह राजपूत रीत
ग़ज़ल
ये होगी भूल दिल की जो सफ़र आसान ये समझे
बड़ी टेढ़ी मशक़्क़त से सफ़र मंज़िल से मिलता है
ऋतु सिंह राजपूत रीत
ग़ज़ल
रातों में जगने के लिए और चैन खोने के लिए
हम ने मोहब्बत यार की बीमार होने के लिए