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ग़ज़ल
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद
या'नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
जिस्म दमकता, ज़ुल्फ़ घनेरी, रंगीं लब, आँखें जादू
संग-ए-मरमर, ऊदा बादल, सुर्ख़ शफ़क़, हैराँ आहू
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
फिर मेरी कमंद उस ने डाले ही तुड़ाई है
वो आहु-ए-रम-ख़ुर्दा फिर राम नहीं होता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मशाम-ए-तेज़ से मिलता है सहरा में निशाँ उस का
ज़न ओ तख़मीं से हाथ आता नहीं आहू-ए-तातारी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
कि है सर-पंजा-ए-मिज़्गान-ए-आहू पुश्त-ख़ार अपना
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न लाई शोख़ी-ए-अंदेशा ताब-ए-रंज-ए-नौमीदी
कफ़-ए-अफ़्सोस मिलना अहद-ए-तज्दीद-ए-तमन्ना है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इस से कम पर रम-ख़ुर्दों का कौन तआक़ुब करता है
या बानू-ए-कू-ए-अवध हो या आहू-ए-ततारी हो