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ग़ज़ल
आँसू थे सो ख़ुश्क हुए जी है कि उमडा आता है
दिल पे घटा सी छाई है खुलती है न बरसती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
अब तो उस सूने माथे पर कोरे-पन की चादर है
अम्मा जी की सारी सज-धज सब ज़ेवर थे बाबू जी
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
ईमा है ये कि देवेंगे नौ दिन के बा'द दिल
लिख भेजे ख़त में शे'र जो बे-दिल के चार पाँच
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
परदेसी सूनी आँखों में शो'ले से लहराते हैं
भाबी की छेड़ों सा बादल आपा की चुटकी सा चाँद
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
हम जो भटके भी तो किस शान-ए-वफ़ा से भटके
हम ने हर लग़्ज़िश-ए-पा में तिरा ईमा देखा