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ग़ज़ल
गिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़्तल में
मिरे क़ातिल हिसाब-ए-ख़ूँ-बहा ऐसे नहीं होता
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
गिनो दोनों तरह अपने मज़ालिम ठीक निकलेगा
शुमार आख़िर से अव्वल तक हिसाब अव्वल से आख़िर तक
मनोहर सहाये अनवर
ग़ज़ल
आइला ताहिर
ग़ज़ल
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
ज़र्फ़-ए-मुनइ'म से बड़ा है मिरा दामान-ए-तलब
अपनी ज़र-मुहरें गिनो मेरी ज़रूरत पे न जाओ
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
कहते हैं गिनो मुझ पे जो दिल आए हुए हैं
कुछ छीने हुए हैं मिरे कुछ पाए हुए हैं
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
थीं वो घर रातें भी कहानी वा'दे और फिर दिन गिनना
आना था जाने वाले को जाने वाला ज़िंदा था
जौन एलिया
ग़ज़ल
रहा है तू ही तो ग़म-ख़्वार ऐ दिल-ए-ग़म-गीं
तिरे सिवा ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहूँ तो किस से कहूँ