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ग़ज़ल
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
लगा के लासे पे ले के आया हूँ शैख़ साहब को मय-कदे तक
अगर ये दो घोंट आज पी लें मिलेगा मुझ को सवाब आधा
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
हमारे जिस्म ही क्या साए तक जिस्मों के ज़ख़्मी हैं
दिलों में घोंप लीं हैं रौशनी की बर्छियाँ हम ने