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ग़ज़ल
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
अलख जमाए धूनी रमाए ध्यान लगाए रहते हैं
प्यार हमारा मस्लक है हम प्रेम-गुरु के चेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
गुफ़्त-ओ-गू में ये नज़ाकत है कि अल्लाह अल्लाह
एक इक हर्फ़ भी मुश्किल से अदा होता है
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
अबस है ज़ाहिदों को मय-कशी में उज़्र-ए-नादारी
गुरु रख लें उसी को जामा-ए-एहराम क्या होगा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ना ये लाल जटाएँ राखें ना ये अंग भबूत रमाएँ
ना ये गेरू-रंग फ़क़ीरी-चोला पहन पहन इतराएँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
सवार-ए-तौसन-ए-मअ'नी हूँ चौगान-ए-तबीअत सीं
लिया हूँ गू-ए-मैदान-ए-सुख़न में हम रदीफ़ों सीं
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
हुज़ूर-ए-दोस्त मिरे गू-मगू के आलम ने
कहा भी उन से जो कहना था बात की भी नहीं
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
ग़ज़ल
'बाक़र' साहब महा कवी हो बड़े गुरु कहलाते हो
अपना दुख-सुख भूल गए तो किस का ख़ाल सँवारोगे