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ग़ज़ल
ये लड़की तो इन गलियों में रोज़ ही घूमा करती थी
इस से उन को मिलना था तो इस के लाख बहाने थे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
'हसन' जब लड़खड़ा कर अपने ही पाँव पे गिरना हो
तो फिर एड़ी पे इतनी देर तक घूमा नहीं करते
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
मुल्कों मुल्कों शहरों शहरों जोगी बन कर घूमा कौन
क़र्या-ब-क़र्या सहरा-ब-सहरा ख़ाक ये किस ने फाँकी है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ये बातों बातों में मुझ को बता गए 'तनवीर'
कल उस के हाथ का कंगन घुमा रहा था मैं