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ग़ज़ल
हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
ज़िंदा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी
हर-चंद कि हूँ होश में हुश्यार नहीं हूँ