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ग़ज़ल
हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उमैर नजमी
ग़ज़ल
हमारी तहरीरें वारदातें बहुत ज़माने के बाद होंगी
रवाँ ये बे-हिस उदास नहरें हमारे जाने के बाद होंगी
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
हिस नहीं तड़प नहीं बाब-ए-अता भी क्यूँ खुले
हम हैं गिरफ़्ता-दिल अभी हम से सबा भी क्यूँ खुले
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
उस वक़्त खुलेगा हिस को भी एहसास-ए-मोहब्बत है कि नहीं
जब शम्अ' सर-ए-महफ़िल रो कर मुँह देखेगी परवाने का
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
बे-हिस दीवारों का जंगल काफ़ी है वहशत के लिए
अब क्यूँ हम सहरा को जाएँ अब वैसे हालात कहाँ