aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलबअर्ज़-ए-मता-ए-अक़्ल-ओ-दिल-ओ-जाँ किए हुए
बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल कासो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ललेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
इक 'उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूमऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ताएक ही शख़्स था जहान में क्या
चली सम्त-ए-ग़ैब सीं क्या हवा कि चमन ज़ुहूर का जल गयामगर एक शाख़-ए-निहाल-ए-ग़म जिसे दिल कहो सो हरी रही
ये अक़्ल ओ दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत केवो ख़ार-ओ-ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए
है अजब कुछ मुआ'मला दरपेशअक़्ल को आगही से ख़तरा है
बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगेइक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
अक़्ल ओ दिल अपनी अपनी कहें जब 'ख़ुमार'अक़्ल की सुनिए दिल का कहा कीजिए
एक साया मिरा मसीहा थाकौन जाने वो कौन था क्या था
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहींफ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
अक़्ल गो आस्ताँ से दूर नहींउस की तक़दीर में हुज़ूर नहीं
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिनदेखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के
नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हमबिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम
दिल परेशाँ है क्या किया जाएअक़्ल हैराँ है क्या किया जाए
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहदअक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
तश्कीक है, न जंग है माबैन-ए-अक़्ल-ओ-दिलबस ये यक़ीन है कि ख़ुदा है, ये इश्क़ है
पुख़्ता होती है अगर मस्लहत-अंदेश हो अक़्लइश्क़ हो मस्लहत-अंदेश तो है ख़ाम अभी
कल जहाँ दीवार थी है आज इक दर देखिएक्या समाई थी भला दीवाने के सर देखिए
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