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ग़ज़ल
बीस इक्कीस बरस पीछे हमें कब तक मिलते रहना है
देखो, अब की बार मिलो तो दिल की बात बता देना
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जिस ने हम को इश्क़ सिखाया जिस से समझे सारे गुर
उस की उम्र थी सोला सतरह अपनी थी इक्कीस बरस
आयाज़ रसूल नाज़की
ग़ज़ल
उस ने जब छोड़ा था मेरी 'उम्र थी इक्कीस बरस
तब से इक्कीस का हूँ मैं बूढ़ा नहीं हो पाऊँगा
गौरव त्रिवेदी
ग़ज़ल
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही सामने तेरे आए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
रफ़ीक़-ए-ज़िंदगी थी अब अनीस-ए-वक़्त-ए-आख़िर है
तिरा ऐ मौत हम ये दूसरा एहसान लेते हैं