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ग़ज़ल
नीम-शब की ख़ामोशी में भीगती सड़कों पे कल
तेरी यादों के जिलौ में घूमना अच्छा लगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
सच अच्छा पर उस के जिलौ में ज़हर का है इक प्याला भी
पागल हो क्यूँ नाहक़ को सुक़रात बनो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जो देखिए तो जिलौ में हैं मेहर-ओ-माह-ओ-नुजूम
जो सोचिए तो सफ़र की ये इब्तिदा भी नहीं
अख़्तर सईद ख़ान
ग़ज़ल
दिल क़स्र-ए-शहंशह है वो शोख़ उस में शहंशाह
अर्सा ये दो आलम का जिलौ ख़ाना है उस का