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ग़ज़ल
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
आज बहुत दिन बा'द मैं अपने कमरे तक आ निकला था
जूँ ही दरवाज़ा खोला है उस की ख़ुश्बू आई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
जिस धज से कोई मक़्तल में गया वो शान सलामत रहती है
ये जान तो आनी जानी है इस जाँ की तो कोई बात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
मैं सारा दिन बहुत मसरूफ़ रहता हूँ मगर जूँही
क़दम चौखट पे रखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-नाला में गोया हल्क़ा हूँ ज़े-सर-ता-पा
उज़्व उज़्व जूँ ज़ंजीर यक-दिल-ए-सदा पाया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
क्या रम्ज़ जाननी है तुझे अस्ल-ए-इश्क़ की?
जो तुझ में उस बदन के सिवा है, ये इश्क़ है
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
दाग़-ए-दिल निकलेंगे तुर्बत से मिरी जूँ लाला
ये वो अख़गर नहीं जो ख़ाक में पिन्हाँ होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
सख़्त-जानी से मैं आरी हूँ निहायत ऐ 'तल्ख़'
पड़ गए हैं तिरी शमशीर में दंदाने दो