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ग़ज़ल
ये भी क्या कम है कि दोनों का भरम क़ाएम है
उस ने बख़्शिश नहीं की हम ने गुज़ारिश नहीं की
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
हाथ मिरे पतवार बने हैं और लहरें कश्ती मेरी
ज़ोर हवा का क़ाएम है दरिया की रवानी बाक़ी है