aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मैं ने ज़ुल्मत में गुज़ारे हैं कई क़र्न सो आपरौशनी से जो मैं डर जाऊँ न घबराइएगा
दस दस बार पढ़ी है मैं ने महा-भारतकोई नहीं है कर्ण सा दानी का किरदार
आज तक दुनिया न दे पाई मिसालक़र्न-ए-अव्वल में वो सुल्तानी हुई
हम कि हर क़र्न में मिल मिल के बिछड़ने वालेआ ख़ुदा को भी करें अपनी रिवायत का शरीक
जितने हो दूर तुम मिरे उतने क़रीब होसच तो ये है कि तुम ही मिरे अब नसीब हो
है प्यार मुझ को कितना बताना पड़ा उसेफिर आख़िरी में मुझ को भुलाना पड़ा उसे
हमें अपनी ग़ज़ल से दर्द-ओ-ग़म तुझ को सुनाना हैबता दे दिल तुझे कितना अभी हम को रुलाना है
बुलाया है तुम्हें तो फिर भला घर क्यों नहीं जातेमुझे अपनी मोहब्बत से रिहा कर क्यों नहीं जाते
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