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ग़ज़ल
यक़ीनन उन का जी भरने लगा है मेज़बानी से
वो कुछ दिन से हमें जाती हुई लॉरी दिखाते हैं
वीरेन्द्र खरे अकेला
ग़ज़ल
ज़ियादा दिल की लॉरी में ग़मों का बोझ मत लादो
मिरे सब्र-ओ-तहम्मुल की कमानी टूट जाएगी