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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
इलाही दिल-नवाज़ी फिर करें वो मय-फ़रोश आँखें
इलाही इत्तिहाद-ए-शीशा-ओ-पैमाना हो जाए
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
वही मय-ख़्वार है जो इस तरह मय-ख़्वार हो जाए
कि शीशा तोड़ दे और बे-पिए सरशार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
कोई मर कर तो देखे इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत में
कि ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल हयात-ए-जावेदाँ तक है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
फ़लक की सम्त किस हसरत से तकते हैं मआ'ज़-अल्लाह
ये नाले ना-रसा हो कर ये आहें बे-असर हो कर
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
जो मय को ढाल भी लें हम तो साक़ी के इशारे पर
नहीं इस के अलावा मय-कदे में इख़्तियार अपना
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मआल-ए-जुस्तुजू-ए-शौक़-ए-कामिल देख लेता हूँ
उठाते ही क़दम आसार-ए-मंज़िल देख लेता हूँ
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
अदू के आते ही रौनक़ सिधारी तेरी महफ़िल की
मआज़-अल्लाह इंसाँ का क़दम ऐसा भी होता है