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ग़ज़ल
उस से ही हैं सारे मौसम उस का मुस्काना बहार
खुल के वो हंस दे कभी और मेघ बरसाए कोई
प्रियंवदा इल्हान
ग़ज़ल
घर की खपड़ैलों के अंदर टप-टप मेघ बरसते थे
अम्मा बाबू टाँकते रहते टीन में साबुन की टिक्की
शारिक़ क़मर
ग़ज़ल
जो बरखा-रुत ने इसी तरह से बहा दिया सारी बस्तियों को
तो प्यासी धरती पे मेघ-मल्हार गाने वाला कोई न होगा
जब्बार वासिफ़
ग़ज़ल
एक किसान ख़ुदा से आख़िर माँगे भी तो क्या माँगे
बन कर मेघ बरस जाता है रब मिट्टी हो जाता है