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ग़ज़ल
मोटी डालों वाले पेड़ के पत्ते कैसे पीले हैं
किस ने देखा कौन रोग है छुपा हुआ जड़ मूल में
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
महफ़िल में शोर-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना-ए-मुल हुआ
ला साक़िया प्याला कि तौबा का क़ुल हुआ
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
आ हम भी रक़्स-ए-शौक़ करें रक़्स-ए-मुल के साथ
ऐ गर्दिश-ए-ज़माँ मेरे हाथों में हात दे
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
मेरे प्यासे होंटों ही से बस दरिया की क़ीमत है
तिश्ना-लबी का मूल है सारा वर्ना दरिया कुछ भी नहीं
तनवीर गौहर
ग़ज़ल
इस दुनिया में कुछ पाने का मूल चुकाना पड़ता है
मिली है शोहरत जिन को ज़ियादा वो अपनों से दूर हुए
देवमणि पांडेय
ग़ज़ल
सुनते हैं बंद फिर दर-ए-मय-ख़ाना हो गया
दूर अयाग़-ओ-शग़्ल-ए-मुल अफ़्साना हो गया
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
मज़ा कुंज-ए-लहद में क्यूँ न लूँ मैं साग़र-ए-मुल का
कि बादा-ख़्वार पास आ कर मिरे मदफ़न के बैठे हैं
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
सेहन-ए-चमन हुस्न-ए-गुल अब्र-ओ-हवा शर्ब-ए-मुल
कोई इसे कुछ कहो हम तो समझते हैं ख़्वाब
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मेरे लब तक आते आते क्यूँ छलक जाता है 'शौक़'
जाम-ए-रंगीं साग़र-ए-मुल या कि पैमाना हुआ
पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़
ग़ज़ल
जाम मय-ए-अलस्त सीं बे-ख़ुद हूँ ऐ 'सिराज'
दौर-ए-शराब-ओ-शीशा-ए-पुर-मुल सीं क्या ग़रज़