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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
बज़्म-ए-आलम में बहुत से हम ने मारे हाथ-पाँव
तेरी सूरत के न देखे प्यारे प्यारे हाथ-पाँव
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
पय-ए-दफ़ा-ए-गज़ंद-ए-ज़ुल-फ़िक़ार अबरू तिरे मुख पर
मिज़ा कूँ कर ज़बाँ करती हैं दम नाद-ए-अली अँखियाँ