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ग़ज़ल
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नेकी इक दिन काम आती है हम को क्या समझाते हो
हम ने बे-बस मरते देखे कैसे प्यारे प्यारे लोग
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
कहूँ क्या ख़ूबी-ए-औज़ा-ए-अब्ना-ए-ज़माँ 'ग़ालिब'
बदी की उस ने जिस से हम ने की थी बार-हा नेकी
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जो नेकी कर के फिर दरिया में इस को डाल जाता है
वो जब दुनिया से जाता है तो माला-माल जाता है
अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी
ग़ज़ल
ख़ुदा के ख़ौफ़ से खुलता है नेकी का जो दरवाज़ा
तो हम भी नेक बनने को ख़ुदा से डर ही लेते हैं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
जमाल एहसानी
ग़ज़ल
बुरे को तग भी करने और तवक़्क़ो नेक-नामी की
दिमाग़ अपना सँवारो तुम नहीं है ये ख़लल अच्छा
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
मैं हर नेकी को अपने दुश्मनों में बाँट देती हूँ
समर-आवर रहा करती हैं इस से नेकियाँ मेरी