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ग़ज़ल
उस के कूचे में है नित सूरत-ए-बेदाद नई
क़त्ल हर ख़स्ता बा-अंदाज़-ए-दिगर होता है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोग
हिमायत अली शाएर
ग़ज़ल
नित नित का ये आना जाना मेरे बस की बात नहीं
दरबानों के नाज़ उठाना मेरे बस की बात नहीं
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
सरगोशी करते पर्दे कुंडी खटकाता नट-खट दिन
दबे दबे क़दमों से तपती छत पर जाती दो-पहरें
इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल
क्या लड़के दिल्ली के हैं अय्यार और नट-खट
दिल लें हैं यूँ कि हरगिज़ होती नहीं है आहट
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तबस्सुम जब किसी का रूह में तहलील होता है
तो दिल की बाँसुरी से नित नए नग़्मे निकलते हैं
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
हम से रूठ के जाने वालो इतना भेद बता जाओ
क्यूँ नित रातो को सपनों में आते हो मन जाते हो
हबीब जालिब
ग़ज़ल
नित-नए नक़्श करें उस पे अज़िय्यत के रक़म
आ कि हम तख़्ती-ए-दिल अपनी पचारे हुए हैं
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
नित-नए नक़्श से बातिन को सजाता हुआ मैं
अपने ज़ाहिर के ख़द-ओ-ख़ाल मिटाता हुआ मैं
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
ज़ंग हो कर क़ैस का दिल कारवाँ-दर-कारवाँ
नित ये कहता है कि वो लैला का महमिल क्या हुआ