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ग़ज़ल
सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद
या'नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
न सवाल-ए-वस्ल न अर्ज़-ए-ग़म न हिकायतें न शिकायतें
तिरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख़्तियार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कल बिछड़ना है तो फिर अहद-ए-वफ़ा सोच के बाँध
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है गया कुछ भी नहीं
अख़्तर शुमार
ग़ज़ल
अहद-ए-वफ़ा या तर्क-ए-मोहब्बत जो चाहो सो आप करो
अपने बस की बात ही क्या है हम से क्या मनवाओगे