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ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
नक़्श-ओ-निगार-ए-ग़ज़ल में जो तुम ये शादाबी पाओ हो
हम अश्कों में काएनात के नोक-ए-क़लम को डुबो लें हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मिरे नगर की हसीं फ़ज़ाओ कहीं जो उन का निशान पाओ
तो पूछना ये कहाँ बसे वो कहाँ है उन का क़याम लिखना
हसन रिज़वी
ग़ज़ल
न इत्मिनान से बैठो न गहरी नींद सो पाओ
मियाँ इस मुख़्तसर सी ज़िंदगी से चाहते क्या हो