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ग़ज़ल
देखो तो पेट बन गया आख़िर ग़ुबारा गैस का
खाते हो इतना गोश्त क्यों पीते हो इतनी चाय क्यों
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
मुलाइम पेट मख़मल सा कली सी नाफ़ की सूरत
उठा सीना सफ़ा पेड़ू अजब जोबन की नारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
वो पेट दिल को लपेट लेवे वो नाफ़ जी को समेट लेवे
मज़ार जी का झपेट लेवे कुछ ऐसा पेड़ू फड़क रहा है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
याद आता है वो हर्फ़ों का उठाना अब तक
जीम के पेट में एक नुक्ता है और ख़ाली हे