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ग़ज़ल
आज ज़रा ललचाई नज़र से उस को बस क्या देख लिया
पग-पग उस के दिल की धड़कन उतरी आए पायल में
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
तुम ऐसा नादान जहाँ में कोई नहीं है कोई नहीं
फिर इन गलियों में जाते हो पग पग ठोकर खाते हो
हबीब जालिब
ग़ज़ल
तोड़ के नाता हम-सजनों से पग पग वो पचताए हैं
जब जब उन से आँख मिली है तब तब वो शरमाए हैं
जमील अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अब चलना है तो चलना है क्या पाँव के छालों को देखें
इस धरती की पग-डंडी से कोई ठिकाना पा जाएँ
सालिक लखनवी
ग़ज़ल
पग पग काँटे मंज़िलों सहरा कोसों जंगल बेले हैं
सफ़र-ए-ज़ीस्त कठिन है यारो राह में लाख झमेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
राह दुश्वार है पग पग पे हैं काँटे लेकिन
राह-रौ के लिए मंज़िल का इशारा है बहुत
एलिज़ाबेथ कुरियन मोना
ग़ज़ल
बेकल उत्साही
ग़ज़ल
नैना अँझूँ सूँ धोऊँ पग अप पलक सूँ झाडूँ
जे कुई ख़बर सो लियावे मुख फूल का तुम्हारा
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
भरा मैं ने बिंदराबन में जो अरे किश्न होप का नारा तो
महाराज नाचते कूदते चले आए लट-पटी पाग से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
वो जिस को कुछ फ़िक्र नहीं है हर ग़म से अंजान है जो
पग-पग उस की राहगुज़र में अश्कों की बारात मिली
अक़ील नोमानी
ग़ज़ल
गाम रखूँ किस के सर पर अब पूछे मुझ से इक वामन
इक पग में जग नाप लिया फिर सर मेरा भी कम लागे