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ग़ज़ल
तिरी तक़लीद से कब्क-ए-दरी ने ठोकरें खाईं
चला जब जानवर इंसाँ की चाल उस का चलन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
कब्क ओ क़ुमरी में है झगड़ा कि चमन किस का है
कल बता देगी ख़िज़ाँ ये कि वतन किस का है
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
हाल-ए-सोज़-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त करूँ तहरीर तो हो
कब्क की चोंच क़लम बाल समुंदर काग़ज़
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
बातें बुलबुल को सुना शैदा-ए-रुख़ गुल को बना
कब्क को चल कर दिखा रफ़्तार क़ैसर-बाग़ में
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
कुब्क-ए-दरी के लाख क़फ़स हों जहाँ धरे
दिखला के उन को शोख़ी-ए-रफ़्तार मार डाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
अब ख़याल उस का वहाँ आँखों में फिरता है मिरी
कोई फिरता था जहाँ कब्क-ए-दरी की सूरत
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
कब्क ओ ताऊस को चलता है तू ठहरा के तो हम
तेरी रफ़्तार के अंदाज़ में मर जाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
कब्क ओ तदरौ गर करें आगे तिरे ख़िराम-ए-नाज़
अपने ख़िराम-ए-नाज़ की उन को लटक दिखा कि यूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
जाओ जो चमन को तो करे फ़र्श-ए-रह-ए-नाज़
बुलबुल जिगर-ओ-फ़ाख़ता दिल कब्क-ए-दरी आँख