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ग़ज़ल
सिपाह-ए-क़ल्ब-शिकन बन गईं सफ़-ए-मिज़्गाँ
तुम ऐसे सफ़दर-ए-ग़ाज़ी हो काँट में है छाँट
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सिपाह-ए-क़ल्ब-शिकन बन गईं सफ़-ए-मिज़्गाँ
तुम ऐसे सफ़दर-ए-ग़ाज़ी हो काँट में है छाँट