aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कट मरे अपने क़बीले की हिफ़ाज़त के लिएमक़्तल-ए-शहर में ठहरे रहे जुम्बिश नहीं की
किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही हैकि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है
फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिनमैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा
ख़याल है ख़ानदान को इत्तिलाअ' दे दूँजो कट गया उस शजर का शजरा निकालना है
तन्हा न कट सकेंगे जवानी के रास्तेपेश आएगी किसी की ज़रूरत कभी कभी
तिरी तरफ़ चले तो उम्र कट गईये और बात रास्ता कटा नहीं
एक एक क़ुर्त दौर में यूँ ही मुझे भी दोजाम-ए-शराब पुर न करो मैं नशे में हूँ
तुम मौज मौज मिस्ल-ए-सबा घूमते रहोकट जाएँ मेरी सोच के पर तुम को इस से क्या
शौक़ है इस दिल-ए-दरिंदा कोआप के होंट काट खाने का
शब-ए-फ़िराक़ से आगे है आज मेरी नज़रकि कट ही जाएगी ये शाम-ए-बे-सहर फिर भी
ज़ोफ़-ए-क़ुवा ने आमद-ए-पीरी की दी नवेदवो दिल नहीं रहा वो तबीअ'त नहीं रही
कट ही गई जुदाई भी कब ये हुआ कि मर गएतेरे भी दिन गुज़र गए मेरे भी दिन गुज़र गए
दरख़्त काट के जब थक गया लकड़-हारातो इक दरख़्त के साए में जा के बैठ गया
तू उसे किस के भरोसे पे नहीं कात रही??चर्ख़ को देखने वाली!! तिरा चर्ख़ा टूटे
ज़िंदगी कट रही है बड़े चैन सेऔर ग़म हों तो वो भी अता कीजिए
कोई न कोई रहबर रस्ता काट गयाजब भी अपनी रह चलने की कोशिश की
बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँताक़त ब-क़दर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं
क्या कहूँ दीदा-ए-तर ये तो मिरा चेहरा हैसंग कट जाते हैं बारिश की जहाँ धार गिरे
फिर उम्र भर कभी न सुकूँ पा सका ये दिलकटने थे जो भी कट गए राहत में चार दिन
पेड़ को दुआ दे कर कट गई बहारों सेफूल इतने बढ़ आए खिड़कियाँ नहीं खुलतीं
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