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ग़ज़ल
बैरन रीत बड़ी दुनिया की आँख से जो भी टपका मोती
पलकों ही से उठाना होगा पलकों ही से पिरोना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
मिरी छत से रात की सेज तक कोई आँसुओं की लकीर है
ज़रा बढ़ के चाँद से पूछना वो उसी तरफ़ से गया न हो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
वक़्त से दिन और रात वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शय ग़ुलाम वक़्त का हर शय पे राज
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
सीते हैं सोज़न से चाक-ए-सीना क्या ऐ चारासाज़
ख़ार-ए-ग़म सीने में अपने मिस्ल-ए-सोज़न आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
तेरी ख़ंदा-पेशानी में कब तक फ़र्क़ न आएगा
तू सदियों से अहल-ए-ज़मीं की ख़िदमत पर मामूर है चाँद
शबनम रूमानी
ग़ज़ल
पास से देखो जुगनू आँसू दूर से देखो तारा आँसू
मैं फूलों की सेज पे बैठा आधी रात का तन्हा आँसू