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ग़ज़ल
कुछ खिड़कियाँ कुछ सेंक-चे फिर चार-छे दीवार भी
इन ख़ास चीज़ों से बना वो घर तिरा ये घर मिरा
धर्मेन्द्र तिजोरी वाले आज़ाद
ग़ज़ल
सख़्ती-ए-ग़म सें मिरे दिल का लहू पानी हो
चश्म-ए-गिर्यां सती जारी है ख़ुदा ख़ैर करे
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
अमल सें मय-परस्तों के तुझे क्या काम ऐ वाइ'ज़
शराब-ए-शौक़ का तू ने पिया नीं जाम ऐ वाइ'ज़