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ग़ज़ल
ऐ शैख़ न पूछो तुम सत्तू भरे हाथ अपने
ख़ालिक़ से डरो हज़रत मस्जिद की चटाई है
इनायत अली ख़ान इनायत
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़-ए-वुज़ू मय जो मिलती पानी सी
सियाह-रू भी दम-ए-हश्र शुस्त-ओ-शू करते
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
धोना है वक़्त-ए-आख़िर मुँह की मुझे सियाही
ऐ अश्क-ए-शर्म अब भी मौक़ा है शुस्त-ओ-शू का
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
तहारत जिस्म की गो हो गई है ग़ुस्ल-ए-ज़ाहिर से
सफ़ाई के लिए दिल की अभी है शुस्त-ओ-शू बाक़ी
क़मर हिलाली
ग़ज़ल
हमारे दाग़-ए-इस्याँ की ख़ुदाया शुस्त-ओ-शू कर दे
फ़रिश्ता सूरत-ए-इंसाँ में हम को हू-ब-हू कर दे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
मिरे दिल की अब ऐ अश्क-ए-नदामत शुस्त-ओ-शू कर दे
बस इतना कर के दुनिया से मुझे बे-आरज़ू कर दे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
सई तू अपनी न कर ऐ गिर्या सर्फ़-ए-शिस्त-ओ-शू
दिल के धोने से कोई ये दाग़ काले जाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
'नक़ीब' अशआ'र अपने ज़िंदगानी के सफ़र में
कोई ज़ाद-ए-सफ़र में जैसे सत्तू बाँधता है
फ़सीहुल्ला नक़ीब
ग़ज़ल
शुस्त-ओ-शू नामा-ए-आमाल की जिस से होए
बरस ऐ अब्र-ए-करम मुझ पे वो तू पानी एक
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
बाक़ी रहे न बादा तो उस के एवज़ में आब
ले ख़ुम की शुस्त-ओ-शू से क़दह और क़दह से हम
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ज़ल
हो रक़ीब-ए-मुर्दा-शौ पर हो न क्यूँ रौशन-बयाँ
याँ चराग़-ए-गोर-ओ-शम-ए-अंजुमन दोनों हैं एक
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
जो ज़ाहिदों ने न बातिन को धो के साफ़ किया
तो कोई काम न ज़ाहिर की शुस्त-ओ-शू ने किया
बेताब अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
कभी तो चाहिए फ़िक्र-ए-नज़ाफ़त-ए-बातिन
रिया के सैद ये ज़ाहिर की शुस्त-ओ-शू क्या है
सयय्द महमूद हसन क़ैसर अमरोही
ग़ज़ल
ग़ुबार-ए-मासियत की इस तरह की शुस्त-ओ-शू बरसों
मय-ए-साक़ी से ऐ ज़ाहिद किया मैं ने वुज़ू बरसों
अब्दुस्सलाम नदवी
ग़ज़ल
रहा दामन-ए-गुल पे नित ख़ून-ए-बुलबुल
सलीक़ा है शबनम को क्या शुस्त-ओ-शू का