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ग़ज़ल
अपने जैसे दीवानों की थोड़ी तो इमदाद करूँ
सोस रहा हूँ हुश्यारी से पागल-पन ईजाद करूँ
शाहनवाज़ अंसारी
ग़ज़ल
भेजता हूँ मैं किसी सानी-ए-बिल्क़ीस के सौब
मेरा ले जाए मगर मुर्ग़-ए-सुलैमाँ काग़ज़