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ग़ज़ल
ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
अगर हो इश्क़ से मोहकम तो सूर-ए-इस्राफ़ील
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ग़ैब-समय के ज्ञान में पागल कितनी तान लगाएगा
जितने सुर हैं साज़ से बाहर उस से ज़ियादा साज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
हिज्र के दरिया में तुम पढ़ना लहरों की तहरीरें भी
पानी की हर सत्र पे मैं कुछ दिल की बातें लिक्खूंगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
ख़ामोश अँधेरी रातों में जब सारी दुनिया सूती है
इक हिज्र का मारा रोता है और शबनम आँसू धोती है
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
गायकी में जितने सुर थे खा गई शोरीदगी
शाइरी में जितने भी थे इस्तिआ'रे मर गए
सैयद जॉन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
वो बरहनगी का क़सीदा कहते हुए इधर निकल आया था
मगर उस की आँखों में सत्र-पोश हया न हो कहीं यूँ न हो
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
सुर कहाँ के साज़ कैसा कैसी बज़्म-ए-सामईन
जोश-ए-दिल काफ़ी है 'अकबर' तान उड़ाने के लिए
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
न हो वहशत-कश-ए-दर्स-ए-सराब-ए-सत्र-ए-आगाही
मैं गर्द-ए-राह हूँ बे-मुद्दआ है पेच-ओ-ख़म मेरा
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क़ब्र में सोए हैं महशर का नहीं खटका 'रसा'
चौंकने वाले हैं कब हम सूर की आवाज़ से