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ग़ज़ल
तनी रस्सी पे दरिया पार उतरना ही मुक़द्दर हो
तो फिर सीनों में गर्क़ाबी का डर रक्खा नहीं करते
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
रवा-दारी की चादर से कहाँ तक ख़ुद को ढापेंगे
कि इस कम-ज़र्फ़ दुनिया में तो ये तानी नहीं जाती
फ़रह इक़बाल
ग़ज़ल
मंज़र है खिड़की के अंदर या है खिड़की से बाहर
गर्दूं की गीराई है या ख़ाक ने चादर तानी है
अम्बरीन सलाहुद्दीन
ग़ज़ल
मैं कभी शोला हूँ कभी शबनम गाहे ज़ख़्म तो गाहे मरहम
करते हैं मुझ में खींचा-तानी मिट्टी आग हवा और पानी
अहमद शहरयार
ग़ज़ल
हर तरफ़ उर्यां-तनी के जश्न होंगे रोज़ ओ शब
इस क़दर तहज़ीब-ए-नौ बेबाक हो जाएगी क्या
रज़ा मौरान्वी
ग़ज़ल
टूटी धनक के टुकड़े ले कर बादल रोते फिरते हैं
खींचा-तानी में रंगों की सूरज भी है शामिल क्या
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
हो गया मुश्किल कैसे छुपाऊँ सर से ले कर पाँव तलक
अपनी चादर फट सकती है ऐसी खींचा-तानी है