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ग़ज़ल
मुझे बताओ कि मेरी नाराज़गी से तुम को है फ़र्क़ कोई
मैं खा रही हूँ न-जाने कब से ही पेच-ताव मुझे मनाओ
आमिर अमीर
ग़ज़ल
बड़ी सर्द रात थी कल मगर बड़ी आँच थी बड़ा ताव था
सभी तापते रहे रात भर तिरा ज़िक्र क्या था अलाव था
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
कभी तुम साफ़ करते हो मिरे दिल की कुदूरत कूँ
कभी तुम बे-सबब तेवरी चढ़ा कर ताव करते हो
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बस इक आँच सी नज़र आई थी है ये राज़ अब भी ढका ढका
वो तेरा हसीन इ'ताब था कि हम अपने ताव में जल गए
सिराज लखनवी
ग़ज़ल
सर्द हवा या टूटा ताव पूरी रात अधूरा चाँद
मेरे आँगन की मिट्टी को जाने कौन भिगो जाता है