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ग़ज़ल
दम-ए-तौफ़ किरमक-ए-शम्अ ने ये कहा कि वो असर-ए-कुहन
न तिरी हिकायत-ए-सोज़ में न मिरी हदीस-ए-गुदाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ग़ौर से देखते हैं तौफ़ को आहु-ए-हरम
क्या कहें उस के सग-ए-कूचा के क़ुर्बां होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
हम मोतकिफ़-ए-ख़ल्वत-ए-बुत-ख़ाना हैं ऐ शैख़
जाता है तो जा तू पए-तौफ़-ए-हरम अच्छा
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मोहब्बत है रमी शक पर मोहब्बत तौफ़-ए-महबूबी
सफ़ा मर्वा ने समझाया मोहब्बत हज्ज-ए-अकबर है
शहज़ाद क़ैस
ग़ज़ल
उन मुग़्बचों के कूचे ही से मैं क्या सलाम
क्या मुझ को तौफ़-ए-काबा से में रिंद-ए-दर्द-नोश
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तिरे कूचे के शौक़-ए-तौफ़ में जैसे बगूला था
बयाबाँ मैं ग़ुबार 'मीर' की हम ने ज़ियारत की
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
कू-ए-बुताँ से तौफ़-ए-हरम को चले तो हम
लेकिन कमाल-ए-हसरत ओ हिरमान ओ ग़म के साथ
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
शौक़ तौफ़-ए-हरम-ए-कू-ए-सनम का दिन रात
सूरत-ए-नक़्श-ए-क़दम ठोकरें खिलवाता है
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
हिन्द के ख़ाक-बसर 'साक़ी' हैं अहल-ए-बातिन
काबा-ए-दिल में पए-तौफ़-ए-हरम जाते हैं
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
चला हूँ 'उज़लत' अब सहरा बगूले की ज़ियारत को
मिलेगा तौफ़ को मजनूँ का बर्बाद आस्ताँ देखें
वली उज़लत
ग़ज़ल
ऐ सालिक इंतिज़ार-ए-हज में क्या तू हक्का-बक्का है
बघोले सा तू कर ले तौफ़-ए-दिल पहलू में मक्का है
वली उज़लत
ग़ज़ल
याँ ग़श हैं शौक़-ए-तौफ़ हैं यारान-ए-काबा को
ऐ नामा-बर तू कहियो ये पैग़ाम और इश्क़